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तुम और मेरी तन्हाई

तुम सा प्यारा कोई आज तक शक्श ना देखा,
भीड़ में भी तुम्हें महसूस कर के मैंने तुझको है पाया ,

साथ नहीं हो तुम मेरे ,
मगर यादें ज़िंदा रह गया ,

तुम मेरे होकर भी मेरे नहीं,
इसी बात का इल्म मुझे है,

चाँद , तारों से दोस्ती कर मैंने खुद के दर्द को भुलाया,
जब वो अपनों से जुदा होकर भी,
अपने गम को भुला दिया,

तब मैंने भी अपने ख़ुशी को अपनों के नाम है कर दिया,
तुम और मेरी तन्हाई में बस इतना फर्क़ है,

 अब तुम दूर हो कर भी दिल के पास हो,
और तुम साथ नहीं तो न सही ,

मेरी तन्हाई साथ है ,
क़ुबूल है मुझे तेरी दी हुई हर बात,
बस एक तू ही है जिसकी मुझे अब जरूरत नहीं है ।।

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1 Comments

Apeksha Mittal

08-Apr-2021 11:04 PM

वाह , लाजवाब कविता , लास्ट लाइन तो अपने ज्यादा ही बेहतरीन कर दी , आपको फॉलो कर लिया है मैम , आपकी ओर भी कविता पढनी है

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